रामलीला ! श्रीराम विवाह संग कैकेयी संवाद तथा कोपभवन का हुआ सजीव चित्रण

गाजीपुर(उत्तर प्रदेश),09 अक्टुबर 2018। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में लीला के चौथे दिन सोमवार श्री रामचबूतरा पर बन्दे वाणी विनायको आदर्श रामलीला मण्डल के कलाकारो द्वारा सीताराम विवाह, राजतिलक की तैयारी, कैकेयी संवाद तथा कोपभवन से सम्बन्धित लीला का मंचन किया गया। जिस समय श्रीराम ने धनुष तोड़कर सीता के हाथ से बरमाला पहना, सारा पांडाल तालियों की गड़गडाहट और जय श्री राम के नारों से गुंज उठा। उसके बाद विश्वामित्र ने जनक जी से कहा कि हे राजन आप राजा दशरथ को निमन्त्रण भेजकर बारात के साथ आने की कृपा करे। गुरुदेव के आदेशानुसार मिथिला नरेश राजा जनक ने दूत द्वारा निमन्त्रण कार्ड भेजते है। दशरथ जी निमन्त्रण पत्र को पाकर अयोध्या वासियो के साथ मिथिला के लिए कुच कर जाते है तथा वेद मन्त्रोचारण के साथ सीताराम का विवाह सम्पन्न किया गया।
बारात लेकर राजा दशरथ अपने राज्य अयोध्या के लिए चले जाते है। थोड़ी दिन बाद गुरु वशिष्ठ को बुलाकर महाराजा दशरथ ने राम के राज तिलक की तैयारी करते है, कि किन्ही कारणोवश राजदरवार के पास दासी मंथरा पहुचकर पूरवासियों से नगर सजने की तैयारी पूछती है। पूरवासियो ने मंथरा को बताया कि महाराज अपने बड़े पुत्र राम को कल सुबह अयोध्या का राजपाठ देने जा रहे है। इतना सुनते ही मंथरा महारानी कैकेयी को सारी बाते बतां कैकेयी से कहती है कि महाराज ने तुम्हे दो वरदान देने को कहा था,उसे अब मांग लो। मंथरा की बात सुनकर महारानी कैकेयी अपने सारे वस्त्राभूषण उतारकर जमीन पर फेक, फटे पुराने कपड़े पहनकर कोप भवन में जाकर जमीन पर लेट गयी जब महाराज को पता चलता है तो महारानी कैकेयी के कोप भवन में जाकर उनके उदास होने का कारण पूछते है, तब कैकेयी ने कहा कि महाराज जो आपने वरदान देने को कहा था वह वरदान आज हमको चाहिए। इतना सुनने के बाद महाराजा दशरथ ने कहा कि रघुकुल रीति सदा चली आयी, प्राण जाई पर बचन न जाई। तुम जो चाहे वरदान मांगो। महाराज के बात को सुनकर कैकेयी कहती है कि महाराज पहला वरदान अयोध्या का राज भरत को दे दीजिये, दूसरा वरदान तापस वेष विशेषि उदासी, चैदह बरिस राम वनवासी। महाराज दूसरे वरदान मे आपके बड़े पुत्र राम को तपस्वी के भेष में चौदह वर्ष के लिए वनवास दे दीजिए। इतना सुनते ही महाराज दशरथ उसी जगह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ते है। जब श्रीराम को सुमन्त के द्वारा पता चला कि पिताजी बेहोश पड़े है तो तुरन्त केकेयी के कोपभवन में जाकर पिता के वेहोश होने का कारण पूछते है। कैकेयी ने कहा कि हे राम महाराज ने हमको दो वरदान देने के लिए कहा था वह समय आने पर पहला वरदान अयोध्या का राज भरत को तथा दूसरे वरदान में तुम्हे चोदह वर्ष के लिए वनवास। इतना सुनने के बाद महाराज बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। माता कैकेयी की बातो को सुनकर राम, लक्ष्मण तथा सीता तपस्वी के भेष में कैकेयी के कक्ष में जाकर माता-पिता को व गुरु वशिष्ठ को प्रणाम करके बाहर निकल आते है। इस लीला को देखकर दर्शक भावविभोर होकर रो पड़े।
इस मौके पर रामलीला समिति के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष, विनय कुमार सिंह उर्फ वीनू, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी (बच्चा), उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी उर्फ बड़े महाराज, मेला प्रबंधक बीरेश राम वर्मा ब्रम्हचारी, उपमेला प्रबंधक शिवपूजन तिवारी, कोषाध्यक्ष अभय कुमार अग्रवाल, अभिषेक पाण्डेय, प्रदीप कुमार, अशोक अग्रवाल, योगेश वर्मा एडवोकेट, अजय पाठक, प्रदीप कुमार उपाध्याय, रामसिंह यादव, पंड़ित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी मीडिया प्रभारी उपस्थित रहे।

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