निपाह ! बचाव व होमियोपैथी 

लखनऊ (उत्तर प्रदेश), 28 मई 2018। निपाह वायरस के प्रकोप से केरल भयभीत है। तीव्र संक्रामक रोग होने के कारण इससे देश के अन्य प्रान्तों के लोगों में भी का भय व्याप्त है। होमियोपैथी के आविष्कारक डॉक्टर सैमुअल क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनिमैन के अनुसार ऐसी स्थितियों में शरीर की जीवनदायिनी शक्ति (वाइटल फोर्स ) कमजोर हो जाती है और ऐसी स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती । शरीर की इस क्षमता को गतिशील बनाने हेतु होमियोपैथी में कारगर दवाएं मौजूद हैं। ऐसी ही एक दवा ‘इग्नेशिया है ,जो महामारी के रुप में फैले प्लेग को रोकने और लोगों को जीवनदान देने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी।यह रोग बरसात की शुरुआत से पहले आया है जो मौसम बदलने के समय केरल से शुरू हुआ है जहां मानसून पूर्व की बारिश प्रारंभ हो गई है।ऐसे मौसम में होने वाली बिमारियों के लिए होमियोपैथी मेंं ‘डल्कामारा’ का प्रयोग चिकित्सक करते हैं। ‘डल्कामारा’ के बहुत से लक्षण ‘निपााह’ वायरस जैसे ही हैं एवं मौसम बदलने की संधिकाल जब दिन गर्म हों और रातें ठंडी, यह डल्कामारा के लक्षणों के बढ़ने का मुख्य कारक है। साथ ही साथ आम के पकने का भी यही मौसम होता है जिसके लालच में चमगादड़ जो निपाह वायरस का वाहक है, फलों तक इस वायरस को पहुंचा देता है।पेड़ से गिरे कटे फटे,सड़े फलों को सुअर आदि मनुष्यों तक पहुंचा देते हैं। इस रोग से बचाव हेतु सर्वप्रथम एक खुराक ‘इग्नेशिया 200 पोटेंसी’ की लेनी चाहिए। रोग प्रसार क्षेत्र में इसकी दो बूंद हफ्ते में एक बार लेना उपयुक्त होगा।इसके उपरांत जब दिन गर्म हों और रातें ठंडी तो ऐसी अवस्था में ‘डल्कामारा’ के लक्षण तेजी से पनपते हैं । इस तरह इस रोग के लिए प्रमुख रोग प्रतिरोधक औषधि होम्योपैथी की ‘डल्कामारा 200’ ही होगी। इसे प्रतिदिन एक बार पूरे एपिडेमिक पीरियड में दो बूंद लेकर निपाह के प्रकोप से बचा जा सकता है। उसे बार-बार लेना इसलिए जरूरी है कि रोग उत्पादक निपाह वायरस का प्रकोप ऐसे मौसम में बार-बार हो सकता है। रोग शुरू हो जाने की अवस्था में यदि हम पहले से उपरोक्त दोनो दवाएं लिए हुए हैं तो रोग का प्रभाव न्यून होता है और फिर उसे अन्य दवाओं के माध्यम से आसानी हीं नियंंत्रित किया जा सकता है। बाद की अवस्था हेतु एकोनाइट, आर्सेनिक, नेट्रमसल्फ, ब्रायोनिया, डल्कामारा, रस टाक्स, जेल्सीमियम, जिंकम मेटालिकम, बेलाडोना, लैकेसिस, ओपियम जैसी अनेकानेक होम्योपैथिक लाक्षणिक दवाएं हैं जिनकेे उपयोग से निश्चित रूप से इस रोग से मुक्त मिल सकती है।

रोग से बचाव के लिए–

* – इग्नेशिया 200 प्रारंभ में एक खुराक फिर हफ्ते में एक बार एक बूंद।

* – जेल्सीमियम 200 की तीन खुराक सप्ताह में एक बार , तीन सप्ताह तक एक बूंद।

* – डल्कामारा 200 एक बार, फिर अगले दिन से एक बूंद रोज एक बार, जहां रोग फैला हुआ हो।

उपरोक्त जानकारी बचाव व जानकारी हेतु दी गयी है, रोग की अवस्था में होमियोपैथिक चिकित्सक से परामर्श के उपरांत ही दवाओं का प्रयोग करें।

साभार – डा. एस. नाथ

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