हनुमान जन्मोत्सव ! देवाधिदेव महादेव के 11वें अवतार रुद्रावतार

वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 31 मार्च 2018। आज शनिवार को नौ वर्षों के बाद हनुमान जन्मोत्सव का पावन पर्व है। अष्टसिद्धि और नौ निधियों के दाता महाबली हनुमान की पूजा प्रायः हर हिन्दू घरों में की जाती है। सूर्य को खाने की वस्तु समझकर बचपन में ही मुंह में रख लिया जिससे हर तरफ अंधकार फैल गया। काफी प्रयासों के बाद जब मारुति ने सूर्य को नहीं छोड़ा तब इन्द्र देव ने अपने वज्र से उनकी ठोढ़ी पर प्रहार किया जिससे उनका मुंह खुला और सूर्य देव बाहर आ सके। इस प्रहार से मारुति की ठोढ़ी अर्थात हनु टेढ़ा हो गया संस्कृत में ठोड़ी को हनु कहते हैं। तभी से उनका नाम हनुमान पड़ गया।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस अवसर पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं।जैैसे शनिवार को मंगल और शनि धनु राशि में हैं तो हस्त नक्षत्र मेें मंगल व शनि का विशेष द्विग्रही योग बन रहा है। इस नवसंवत्सर के राजा सूर्य और मंत्री शनि हैं, ऐसे मेें ग्रहों की पीड़ा शांत करने में हनुमान जयंती का विशेष महत्व है।
जन्म – चैत्र पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त अर्थात प्रात: 4 बजे वानरराज केसरी के पुत्र के रुप में माता अंजनी के गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ था। इसलिए इनको केसरीनंदन भी कहते हैं। वह समस्त वेद, पुराण के ज्ञाता, ज्योतिषी, संगीतज्ञ, यंत्र-मंत्र – तँत्र के सिद्धहस्त, रामभक्त के साथ-साथ संकटमोचन भी हैं। हनुमानजी सर्वपूज्य हैं क्योंकि वह अकेले ऐसे देव हैंं जो समस्त संकट दूर कर सर्व कार्य सिद्ध कर सकते हैं। सूर्य शिष्य होने और सूर्य देव के जप-तप-ध्यान से ही उनको असाधारण सिद्धियां और निधियां प्राप्त हुईं।उन्हें अणिमा(आकार बढ़ाने), लघिमा (आकार छोटा करने), गरिमा (वजन भारी करना), प्राप्ति (कुछ भी प्राप्त करने), प्राकाम्य ( सर्व प्रदाता), महिमा( यश-कीर्ति), ईशित्व (ईशरत्व) और वशित्व( वशीकरण) की अप्रतिम शक्तियां मात्र हनुमानजी को ही सुलभ हैंं। न्याय प्रिय शनिदेव से भी हनुमानजी का गहरा संबंध है। हनुमान जी ने शनि देेव
को अपनी पूंछ में बांधकर रामसेतू की परिक्रमा कराई थी जिसमें शनिदेव घायल हो गए थे और अपनी पीड़ा शांत करने के लिए शनि देव ने अपने शरीर पर सरसो का तेल लगाया था। इसलिए, शनिदेव को सरसो का तेल चढ़ाया जाता है। हनुमान जी ने शनि देव को इस शर्त पर मुक्त किया था कि मेरे भक्तों को कभी कष्ट नहीं दोगे। इस बार शनिवार को हनुमान जयंती होने से शनि शांति का अवसर मिल रहा है।
मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव के 11 वें रुद्रावतार की पूजा से सर्वग्रहों की पीड़ा शांत होती है।उनकी जिस भाव से भक्ती की जाती है, वह उसी रुप में शक्ति प्रदान करते हैं। भगवान शिव के ग्यारहवे रूद्र के रूप में प्रकट हुए हनुमानजी कलयुग के सारथी हैं जो हर-एक परिस्थिति में अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। हनुमान जयंती पर हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। हनुमान जी की पूजा करते समय उनके सामने घी का या फिर चमेली के तेल का दीपक जलाएं तथा अर्पित करने वाले प्रसाद भी शुद्ध साम्रगी से तैयार करें।हनुमान जी को लाल रंग का ही फूल व वस्त्र चढ़ाएं। उनका पूजन करें —
” मनोजवं मारुति तुल्य वेगं,
जितेन्द्रियां बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानर यूथ मुख्यं,
श्री राम दूतं शरणं प्रपद्ये।”
इसके उपरांत हनुमान चालीसा या सुन्दर कांड का पाठ कर भक्ति भाव से प्रसाद ग्रहण करें।

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