विश्व जल दिवस ! प्राकृतिक जल संपदा का भयंकर दोहन भविष्य के लिए हनिकारक

” छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा ”

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा कही गई चौपाई आज के वैज्ञानिक युग में भी सटीक बैठती है। शरीर के निर्माण में पृथ्वी, जल,वायु ,आकाश तथा अग्नि तत्व की प्रधानता होती है। इसमें जल और वायु अत्यंत महत्वपूर्ण घटक हैं । जल समस्त जीवधारियों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहा गया है कि

जल ही जीवन है अर्थात जल प्राणियों की आवश्यक जरूरतों में एक है। आज विश्व के जल की हो रही कमी पर पूरे विश्व समुदाय के वैज्ञानिक चिंतित हैं। बढ़ती जनसंख्या व जल के अत्यधिक दोहन से मानव प्रभावित होने लगा है। विभिन्न देशों में अनेकों स्थानों पर पेयजल की हो रही किल्लत को ध्यान में रखते हुए गंभीर जल संकट से गुजरते लोगों को बचाने के लिए अब पानी की हर बूंद को बचाने की आवश्यकता आ गई है। 22 मार्च 1992 को रियो डी जेनेरियो में पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जल पर ही आयोजित किया गया था ,तभी से पानी के महत्व तथा उसे संरक्षित करने के संकल्प के रूप में हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस का आयोजन किया जाता है ।
पानी पर बने विश्वस्तरीय 11 देशों के उच्च स्तरीय पैनल का कहना है कि विश्व गंभीर जल संकट से गुजर रहा है। इससे बचने का के लिए पानी के हर बूंद का हिसाब रखने की जरूरत है। इस विश्वस्तरीय पैनल में ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, जार्डन, नीदरलैंड के प्रधानमंत्री तथाहमारीशस, मेक्सिको, हंगरी, पेरू ,दक्षिण अफ्रीका, सेनेगल व तजाकिस्तान के राष्ट्रपति शामिल है तो विशेष सलाहकार के रूप में कोरिया के पूर्व प्रधानमंत्री भी सम्मिलित हैं ।
हमारे देश में पानी के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। देश में पानी बरबादी के जो तथ्य सामने आए हैं, उस पर जागरूक होकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। देश की बढ़ती आबादी भूमिगत जल का मनमाना दोहन पानी की भारी खपत मनमाना प्रयोग के चलते हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में गर्मियों में पानी का अकाल शुरू होने लगा है। पानी की हो रही कमी हमारे सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है। यदि हम अभी नहीं चेते तो आने वाले समय में पानी के लिए दर दर भटकना होगा।

आज देश का बेंगलुरु पानी के भयंकर संकट से जूझ रहा है ।वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार अगले तीन दशकों में शहरी क्षेत्रों में पानी की मांग आज से दोगुनी हो जाएगी ।अभी हमारे देश में लगभग ग्यारह सौ अरब घन मीटर पानी की आवश्यकता होती है आने वाले तीस वर्षों में यह खपत 1450 अरब घन मीटर होने की अनुमान है। ये तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने दुरुपयोग पर सचेत करते हैं। ध्यान दें —

* मुंबई में वाहन धोने में लगभग प्रतिदिन 50 लाख लीटर पानी खर्च होता है।
* यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
* बाथ टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 लीटर पानी खर्च होता है।
* विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।
* प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
* दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण रोज़ 17 से 44 प्रतिशत पानी बह कर बेकार हो जाता है।
* इज़राइल में औसतन मात्र 10 सेंटी मीटर वर्षा होती है फिर भी इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है । शेष 1.5 प्रतिशत पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुव प्रदेशों में है। इसमें से बचा एक प्रतिशत पानी नदी, सरोवर, कुओं, झरनों और झीलों में है जो पीने के लायक है। इस एक प्रतिशत पानी का 60 वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40 वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं।
आज आवश्यकता है हमें जागरुक होकर पानी की हो रही बर्बादी को रोकने की तथा बेकार पानी को उपयोगी बनाकर उसे पुनः उपयोग करने की ।
नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में कानून में सख्ती बनाकर उन्हें रोकने की जरूरत है।
क्या आप जानते हैं कि ——
1. पृथ्वी पर पैदा होने वाली सभी वनस्पतियाँ से हमें पानी मिलता है।
2. आलू और अनन्नास में 80 प्रतिशत तो टमाटर में 15 प्रतिशत पानी है।
3. पीने के लिए मानव को प्रतिदिन ३ लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए।
4. 1 लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है तो एक किलो गेहूँ उगाने के लिए 1 हजार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए 4 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। अब समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करनी होगी। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। नदियों की ही तरह हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब, पोखरे व कुंए आज गायब हो गए हैं क्योंकि इनके रख-रखाव और संरक्षण पर बहुत कम कार्य किया गया है। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता, हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर यदि अब हम नहीं चेते तो पानी हमें रुलाएगा। विज्ञान और पर्यावरण के ज्ञान से मानव ने जो प्रगति की है उसे प्रकृति संरक्षण में लगाना भी ज़रूरी है। पानी की असाधारण कमी को देखते हुए पिछले सालों में तमिलनाडु ने वर्षा जल संरक्षण कर जो मिसाल कायम की है उसे सारे देश में विकसित करने की आवश्यकता है

साथ ही साथ वृक्षारोपण कर प्रकृति को हरा भरा बनाने की भी जरूरत है ।

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