“गांधी की प्रासंगिकता” विषयक गोष्ठी के साथ कवि सम्मेलन सम्पन्न 

गाजीपुर। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर द प्रेसिडियम इंटरनेशनल स्कूल अष्टभुजी कालोनी बड़ी बाग में “गांधी की प्रासंगिकता” विषयक गोष्ठी डॉ श्रीकांत पाण्डेय की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता बलिया पीजी कॉलेज के राजनीति विज्ञान के प्रो. शिवेश राय ने कहा कि, गांधी को न समझने वाला मनुष्य की श्रेणी में ही नहीं हो सकता क्योंकि वह मानवता के अदम्य दस्तावेज हैं।                                        आधार वक्तव्य देते हुए डॉ महेश चन्द्र लाल ने कहा कि गांधी के अंदर जल्दबाजी नहीं थी। डॉ स्वाति श्रीवास्तव ने कहा कि गांधी ने राष्ट्रीय चेतना को आम जनमानस से जोड़ दिया। डॉ अम्बिका पाण्डेय ने कहा कि, भारत विभाजन के असली दोषी ही आज गांधी पर विभाजन के लिए दोषारोपण करते है, जबकि. रामनगीना कुशवाहा ने महात्मा बुद्ध के बाद आम जन के लिए कष्ट सहने वाले दूसरा बड़ा नाम गांधी का मना। वरिष्ठ साहित्यकार माधव कृष्ण ने कहा कि, गांधी के पास घृणा नहीं थी, उनके पास केवल मिशन था इसलिए वह अपनी लगातार आलोचना कर रहे लोगों जैसे बाबा अम्बेडकर या स्वामी सहजानंद के मिशन को अपना मिशन बना सके। अध्यक्ष डॉ श्रीकांत पाण्डेय ने कहा कि, गांधी ने खण्डित राष्ट्रीय चेतना को एक सूत्र में पिरोया. गांधी हंस थे, जहाँ जो अच्छा मिल जाता था उसे चुन लेते थे।


            काव्य सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी की कविता “गांधी सीने पर गोली कहा माँ-गोदी में सुख से सोये/ जन-जन की आँखों में आंसू धरती और अम्बर भी रोये” ने शहीदी दिवस पर प्रकाश डाला‌। कवि हरिशंकर पाण्डेय ने “प्रेम का रस उड़े जो ऐसा यहाँ प्रेममय हो जाए सारा जहां सुनाकर गांधी के प्राणिमात्र के लिए प्रेम की ओर ध्यान खींचा‌। दिनेश चन्द्र शर्मा ने “अर्चना के लिए एक सुमन चाहिए, वन्दना के लिए एक नमन चाहिए/ गीत अधरों पर सरक जायगी दर्द के लिए एक चुभन चाहिए” सुनकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी। वहीं कवियत्री पूजा राय ने “मुझे भी पहली बार हाथ में लिए/ क्या माँ ने देख लिया होगा/ जीवन, जन्म, मृत्यु?” सुनाकर गंभीर चिन्तन में डाल दिया। शालिनी श्रीवास्तव ने “सागरों ने बादलों को दान देकर पूछा है/यूं घुमड़ते फिरते हो पर सावनों में सूखा है” सुनाकर श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं। रिम्पू सिंह ने,”स्त्री के सामने खड़ी होती है चौहद्दी/ प्राचीर बन्धनों की जिसकी वो कैदी.” सुनाकर स्त्रियों की समस्या पर लोगों का ध्यान खींचा। माधव कृष्ण ने गांधी की तरह अपने आपको किसी भी बंधन से मुक्त करने का आह्वान करते हुए पढ़ा, “कहा किसने बन्धनों का दास हूँ मैं/ शांत हूँ पर राम का वनवास हूँ मैं.”। डॉ रामअवध कुशवाहा ने पढ़ा, “वे शब्द कहाँ से आते हैं जो कविता बन जाते हैं/ कहा आपने खाने में जो शब्द मिलाकर खाते हैं.” डॉ महेश चन्द्र लाल ने पहली बार कविता-पाठ करते हुए खूब वाहवाही लूटी, “आदिम अतीत में भी खाया था/ आदमी ने आदमी को पर/विवशता थी वह अस्तित्त्व में बने रहने के लिए.” नवोदित युवा कवि मनोज सिंह यादव ने “मेरे रुदन को हंसी में बदलना/मेरे लिए खुद काँटों पर चलना/कहीं जिक्र जब इसकी की जाती है/ माँ तेरी याद बहुत आती है” सुनकर लोगों को भावुक कर दिया। कार्यक्रम में जान्हवी, प्रियंका, सुमित्रा, ममता, सुनीता, सच्चिदानंद, संभव, सौरभ, अंशू, सोनम, प्रियांजलि, ममता व आद्या राय सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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