धर्म, संस्कृति और परंपरा का प्रतिबिम्ब है दीपोत्सव
आज भौतिक भोगवादी संपत्ति जुटाने की प्रतिस्पर्धा में मानव अपने जीवन के मूल स्वरूप से भटकता जा रहा है। भौतिक सुख साधनों की असीमित व अनियंत्रित चाह के चक्रव्यूह में फंस कर मानव स्वयं तनाव के दलदल में फंसकर अभिशप्त जीवन जीने को विवश हो रहा है। निरन्तर आगे बढ़ने की चाह में दिन भर काम की अधिकता और तनाव से मानव शारीरिक और मानसिक रोगों की चपेट में आकंठ डूबता जा रहा है। रहन-सहन, खान-पान, अव्यवस्थित दिनचर्या के चलते मानसिक शांति और पारिवारिक असंतुलन के कारण संयुक्त परिवार अब लगातार टूटते जा रहे हैं। ऐसे में जीवन की फैली नकारात्मकता और अंधकार को हटाकर सकारात्मकता का प्रकाश लाने में सनातनी पारम्परिक त्यौहारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक सरोकार से जूड़े हमारे पर्व जहां हमें प्रकृति से सामंजस्य स्थापित कराने में मददगार होते हैं, वही प्राकृतिक संपदाओं को बचाने की प्रेरणा भी देते हैं।
दीप पर्व दीपावली का पांच-दिवसीय त्योहार हमारे जीवन के भटकाव रुपी अंधकार को दूर कर सदैव प्रकाश की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। हर धर्म में ज्योति (प्रकाश) को पवित्र माना गया है। यह ईश्वर का चेतन प्रज्वलित होकर सबके शरीर में विद्यमान रहता है। धर्म, संस्कृति और संस्कार से जूड़े पर्व त्यौहार हमारे इतिहास, अर्थशास्त्र, धर्म, संस्कृति और परंपरा का प्रतिबिम्ब हैं। दीपावली की हमारी परंपरा में खास भूमिका है और उसके पीछे गहरा दर्शन भी है। स्वस्तिक बनाया जाना, शुभ-लाभ लिखा जाना, दीपक प्रत्येक घर-खेत में जलाया जाना, पुराने सिक्के और कलश… ये सब पूजा के लिए अहम् हैं। यह सब प्रकृति पूजा एवं उस स्रोत के प्रति आभार व्यक्त करना है जिससे हमारा चेतन जुड़ा हुआ है। जिस प्रकार एक जलता हुआ दीया अनेक बुझे हुए दीयों को प्रज्वलित कर सकता है, काफी दूरी से भी टिमटिमाता हुआ दीया अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी मनुष्य की आत्मा दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकाश से प्रज्वलित कर एक सभ्य एवं समृद्ध समाज का निर्माण कर सकती है। दीपक और मनुष्य के बीच गहरी समानता है। दोनों मिट्टी के बने होते हैं। दोनों चेतना से प्रज्वलित होते हैं। दीपक जलता है तो आलोक बिखेरता है, चारों ओर उजाला फैलाता है। इसी प्रकार जब मनुष्य की आन्तरिक ऊर्जा प्रदीप्त होती है तो वह सर्वसमाज के लिए हितकारी होता है। दीपक अपने प्रकाश से अंधकार रुपी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है, उसी प्रकार अन्तर्रात्मा में फैला प्रकाश मानव को ईश्वर व प्रकृति के समीप लाकर शान्ति के मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा देता है अर्थात दीपावली आध्यात्मिक अंधकार को आंतरिक प्रकाश से नष्ट करने का त्योहार है। ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम अपने आपको संस्कारित कर सकें, स्वयं एवं समाज को कुरीतियों एवं अपसंस्कारों से मुक्त कर सकें। मनुष्य जीवन की सार्थकता अपने संस्कारों को व्यक्तित्व के विकास में लगाकर समाज एवं राष्ट्र की सेवा करना है। मनुष्य जीवन संघर्ष से कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए है।
दीपावली का पर्व इन संस्कारों की दीपमाला है, जो संघर्षों की घनघोर अंधेरी रात्रि में हमें अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह सद्भाव और मिलन का त्यौहार है। एक ऐसा सामूहिक पर्व जिसमें एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटी जाती हैं। दीपावली से जीवन में गति आती है, जीवन सकारात्मकता की ओर मुड़ता है, नए उत्साह का संचार होता है। इस पर्व से आपसी उमंग, प्रेम, सद्भाव, आनंद एवं उल्लास का वातावरण व्यक्ति एवं समाज में फैलता है।
दीपावली की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली मूलत: यक्षों का त्यौहार माना जाता है। इस दिन यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ मां लक्ष्मी की पूजन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि राजा कुबेर अपने धन-समृद्धि को अक्षुण्ण रखने के लिए माता लक्ष्मी की पूजन करते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध इसी दिन संहार किया था। रामचन्द्रजी के वनवास से अयोध्या लौटने पर अयोध्यावासियों ने दीप प्रज्वलित करके खुशियां मनाई थीं, तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है। विष्णु भगवान ने इसी दिन राजा बलि से देवताओं एवं लक्ष्मीजी को स्वतंत्र कराया था। । दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। नरक चतुर्दशी को मां धूमावती, जो कि अलक्ष्मी या नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक हैं, की पूजा करके उन्हें विदाई दी जाती है। दीपावली के दिन जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए धन और ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी का पूजन विधानपूर्वक किया जाता है। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र के कोप से बचाया था। कृषक वर्ग के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। खरीफ की फसल पककर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता है। भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परंपराओं से दीपावली मनाई जाती है। दीपावली पर अपने घर के साथ-साथ अपने मन की भी सफाई करें। सालभर के जितने अहंकार, द्वेष, ईर्ष्या मन में समाए हैं, उन्हें घर के कचरे के साथ बाहर फेंककर अपने मन को स्वच्छ, उज्ज्वल व धवल कर लें, उसे दीपमालाओं की तरह चमकने दें। अपने पर्यावरण को गंदगी से मुक्त करें। घर के साथ-साथ अपने आसपास के वातावरण को साफ रखकर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ में अपना योगदान दें। गरीब, अपंग एवं वृद्धजनों के साथ बैठकर उनके मन के निराशा के अंधेरों को प्रकाश के दीपक में परिवर्तित करने का प्रयास करें। पटाखों से जहां वातावरण प्रदूषित होता है वहीं आर्थिक हानि भी होती है अत: पटाखे न छोड़ें एवं उतनी राशि की मिठाई लेकर गरीब बच्चों में बांट दें। अलक्ष्मी के आने से घर में दरिद्रता आती है। जुए के पैसे अलक्ष्मी का रूप होते हैं। आप हारें या जीतें, दोनों स्थितियों में आप अलक्ष्मी के शिकार बनेंगे। दीपावली सामाजिक रिश्तों को व्यवस्थित करने का त्यौहार है। इस त्यौहार के बहाने आपसी संबंधों को बेहतर करने का महत्वपूर्ण अवसर मिलता है। इस त्यौहार की सकारात्मक ऊर्जा है, जो आम और खास का भेदभाव नहीं करती। सही मायनों में खुशी का संपन्नता व विपन्नता से सीधा रिश्ता है भी नहीं, एक मन:स्थिति है। कोई करोड़पति भी खुश नहीं है, तो कोई फकीरी में मस्त है। दीपावली के दौरान देर रात व सुबह बाजारों में फेंके गए सामान और दीपावली के बाद पटाखों का कचरा बीनकर खुशी हासिल करने वाले लोग भी इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।
दीपावली पर्व के मूल में समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी आर्थिक समृद्धि रोजगार देने और उसके जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा भरने का मंतव्य निहित है। दीपावली सामाजिक समरसता पैदा करने का अवसर है। आज की अर्थ प्रधान व्यवस्था ने दीप पर्व का बाजारीकरण कर दिया है। इस महापर्व को बाजारवाद का पर्याय न बनाएं। व्यक्तिवादी सोच के बजाय सामाजिक समरसता की धारा बहाएं। खुशी मनाएं, खुशियां बांटें। त्यौहार की मूल अवधारणा के अनुरूप भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक धन का प्रवाह होने दें यानी दीये बनाने वाले कुम्हार, गांव-कस्बे के हलवाई, दीये की बाती बनाने वाले व्यक्ति का भी ध्यान रखें। यानी गरीबी के चक्र से मुक्ति की चाह रखने वाले तबके का भी ध्यान रखें। सड़ी चाकलेट मिठाई की पूरक नही है डिब्बा बंद विदेशी चाकलेट में मांसाहार भी शामिल है अतः बहिष्कार करें। भारतीय सामान का उपयोग करें, जो भारतीय परंपरा, संस्कृति व बाजार का अंतिम घटक है। आयातित बिजली के दीये वह रोशनी कदापि नहीं दे सकते, जो भारतीय माटी के बने दीपक दे सकते हैं। इनसे किसी के जीवन का अंधियारा भी दूर होता है।
आप भी दिवाली पर पटाखे जलाएं, रोशनी करें किंतु साथ ही याद रखें कि हमारे किसी कदम से हमारे समाज को नुकसान न हो। यदि हम एक कदम भी इस ओर बढ़ा पाते हैं तो फिर जगमग दीपावली का वास्तविक आनंद उठा सकते हैं। पडोसी के घर में भी उजाला हो। खुशियां बांटने से बढ़ती है अतः ध्यान रहे कि समाज के वंचित वर्ग तक भी खुशियों का प्रसार हो। यह सौभाग्य की बात है कि आज हम ऐसी शासन सत्ता के दौर से गुजर रहे हैं जिन्हें सांस्कृतिक, धार्मिक विश्वास में आस्था है वरना हिन्दू संस्कृति के गौरव को नष्ट भ्रष्ट करने के लिए विधर्मियों और उनके पोषकों ने निरंतर प्रयास किया। यह हमारी सनातन संस्कृति की जीवंतता है कि हम आज भी इसे आत्मसात किए है। आपको दीपपर्व की अनन्त शुभ कामनाएँ।
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