समाज की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए शिक्षा और रोजगार आवश्यक 

गाजीपुर। पसमांदा समाज (दलित मुस्लिम) आज भी अपनी पहचान और समाज में बराबरी के स्थान के लिए जूझ रहा है ताकि वह भी समाज और देश की मुख्यधारा के साथ जुड़ सके। मंडल आयोग ने कहा कि मुस्लिम समाज में यह जो वर्ग है अत्यंत पिछड़ा वर्ग है। इनकी हालत इतनी दयनीय है कि न तो इनके पास रोजगार है, ना शिक्षा है और न ही सामाजिक समानता। पसमांदा समाज (दलित मुस्लिम) के उत्थान में लगे जिले के मुहम्मदाबाद निवासी समाजसेवी वसीम रज़ा बॉलीवुड नगरी मुंबई समेत पूरे देश में अलख जगा रहे हैं। पसमांदा समाज की तरक़्क़ी और बहबूदी के लिये ज़ोर-शोर से लगे हुए हैं। उनका कहना है कि सामान्यतः समाज में यह अवधारणा है कि इस्लाम में सब बराबर हैं l इस धर्म में कोई भी अलग जाति नहीं होती है। यह बात पूरी तरह निराधार है। उन्होने कहा कि भारत में इस्लाम का आगमन व्यापार के माध्यम से हुआ। दक्षिण भारत में सबसे पहले इस्लाम का उदय हुआ। यह व्यापार करते हैं और दीन (धर्म )की दावत (उपदेश) देते हैं कि इस्लाम में कोई जात पात नहीं होती और कोई भेदभाव नहीं (सामाजिक समानता है)। मोहम्मद साहब की तालीम (शिक्षा) से जब लोगों को इस नए धर्म की अच्छाइयों का पता चला तो वे सभी इस्लाम में दाखिल हो गए, क्योंकि उस समय समाज में चार वर्ग था। जिसमें निचले तबके की कोई विशेष अहमियत नहीं थी। समाज का वही तीसरा और चौथा वर्ग इस्लाम में दाखिल हुआ और वह सारे काम करते थे जो वह पहले किया करते थे। बाद में जब मुसलमानों का राज आया तब उन्हें लगा की हालत सुधर जाएगी क्योंकि इस्लाम में सामाजिक समानता है। लेकिन ऐसा ना हो सका… जो बाहर से आए थे वह अपने आप को सर्वोपरि मानते थे, वह वर्ग फिर से इनका सामाजिक और आर्थिक शोषण करने लगे, जिसके कारण ये लोग समाज की मुख्यधारा से कट गए। यह समाज बिल्कुल हासिए पर चला गया। इन्हें शिक्षा और व्यापार से भी वंचित कर दिया गया यही समाज आज पसमांदा समाज दलित समाज कहा जाता है। पसमांदा समाज में लगभग 36 से 39 समाज आता है इसमें शिक्षा के अभाव की वजह से इनका सामाजिक और आर्थिक उत्थान नहीं हो पाया। यह समाज आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है। आज भी यह समाज निरंतर शोषण का शिकार हो रहा है। वसीम रजा ने पसमांदा समाज के लोगों को जागरूक करने का वीणा उठाया है ताकि यह समाज शिक्षा और रोजगार हासिल कर देश और समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सके।

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