कुष्ठ उन्मूलन –  कार्यशाला में दी गई जानकारी

ग़ाज़ीपुर। कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के सभागार में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ हरगोविंद सिंह की अध्यक्षता में कार्यशाला एवं समीक्षा बैठक सम्पन्न हुई। इसमें जनपद के सभी ब्लॉकों के चिकित्सा अधीक्षक के साथ ही एनएमए और एनएमएस शामिल रहे।

जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ एसडी वर्मा ने बताया कि कुष्ठ रोगी के खोजे जाने और कुष्ठ रोग के बारे में जानकारी के साथ ही इसका कैसे निवारण हो इसको लेकर विभाग सचेष्ट रहता है और समय-समय पर कार्यक्रम भी आयोजित करता है।

आयोजित कार्यशाला में बताया गया कि लेप्रोसी के मरीज़ों को अक्सर छुआछूत, कोढ़ और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। जागरुकता के अभाव की वजह से लोगों को लगता है कि यह छूने से फैलता है। यह बिल्कुल ग़लत है, संक्रामक बीमारी होने के बावजूद यह छूने या हाथ मिलाने, साथ में उठने-बैठने या कुछ समय के लिए साथ रहने से नहीं फैलती। हालांकि, यह संभव है कि लेप्रोसी पीड़ित व्यक्ति के साथ लंबे समय तक रहने से परिवार के सदस्य इसकी चपेट में आ सकते हैं। लेकिन, नियमित रूप से इसका चेकअप और बचाव करने से इससे बचा जा सकता है। बताया गया कि लेप्रोसी या कुष्ठ रोग एक जीर्ण संक्रमण है, जिसका असर व्यक्ति की त्वचा, आंखों, श्वसन तंत्र एवं परिधीय तंत्रिकाओं पर पड़ता है। यह मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होता है। हालांकि यह बीमारी बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं है, लेकिन मरीज के साथ लगातार संपर्क में रहने से संक्रमण हो सकता है। पीड़ित व्यक्ति के खांसने या छींकने पर उसके श्वसन तंत्र से निकलने वाले पानी की बूंदों में लेप्रे बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया हवा के साथ मिलकर दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुंच कर इन बैक्टीरिया को पनपने में करीब 4-5 साल लग जाते हैं। कई मामलों में बैक्टीरिया को पनपने (इन्क्यूबेशन) में 20 साल तक लग जाते हैं। प्राइमरी स्टेज पर लेप्रोसी के लक्षणों की अनदेखी करने से व्यक्ति अपंगता का शिकार हो सकता हैं। यह संक्रामक है, पर यह लोगों को छूने, साथ खाना खाने या रहने से नहीं फैलता है। लंबे समय तक संक्रमित व्यक्ति के साथ रहने से इससे संक्रमण हो सकता है, पर मरीज़ को यदि नियमित रूप से दवा दी जाए, तो इसकी आशंका भी नहीं रहती है।

लेप्रोसी के प्राइमरी स्टेज को ट्यूबरक्यूलोइड कहा जाता है। इसमें लेप्रे बैक्टीरिया शरीर के हाथ, पैर, मुंह जैसे एक्पोज या खुले अंगों और उनकी पेरीफेरल नर्व्स या गौण तंत्रिकाओं को ज़्यादा प्रभावित करता है। इसमें ब्लड या ऑक्सीजन की सप्लाई कम होने से प्रभावित अंग सुन्न होने लगते हैं। शरीर की त्वचा पर पैच पड़ने लगते हैं या त्वचा का रंग हल्का पड़ने लगता है और वह जगह सुन्न होने लगती है। वहां का सेंसेशन ख़त्म हो जाता है। समुचित इलाज न कराने से पैच दूसरे अंगों पर भी होने लगते हैं। पैच वाली स्किन ड्राइ और हार्ड होने लगती है। किसी भी प्रकार की चोट लगने या दूसरे इन्फेक्शन होने पर उनमें अल्सर हो सकता है।

कार्यशाला में एसीएमओ डॉ जे एन सिंह,डॉ मनोज सिंह के साथ अन्य विभागीय लोग मौजूद रहे।

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