सम्पन्न हुआ “कामरेडो को मूर्ति पूजा नहीं आती” का विमोचन

गाजीपुर। आध्यात्मिक, वौद्धिक व साहित्यिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ साहित्यकार व अध्यात्मिक पुरुष माधव कृष्ण के हिंदी काव्य संग्रह कामरेडों को मूर्ति पूजा नहीं आती का लोकार्पण समारोह शहर के महुआबाग स्थित आदर्श इण्टर कॉलेज के सभागार में सम्पन्न हुआ। काशी हिन्दू विश्ववविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र के शताब्दी पीठाचार्य प्रोफेसर राकेश उपाध्याय जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि यह संग्रह बहुरंगी है, इसमें समाज राजनीति विचारधाराओं पर चुटीले व्यंग्य हैं वहीं नई शिक्षा नीति के आधार पर भर्ती जैसी कविताएं भी है जो गधे को शेर और शेर को गधा बनाने की प्रवृत्ति पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती हैं। उन्होंने कविता के सांस्कृतिक आयामों की सराहना करते हुए हूणार कविता की विशेष चर्चा की जिस हूणारि स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सेमिनार कराया था। उन्होंने कहा कि यह गंगा के पानी का प्रभाव है कि माधव कृष्ण जौसे कॉरपोरेट संस्कृति के प्रतिभावान युवक अपने समाज और देश में लौटकर संस्कृतिपरक लेखन कर रहे हैं।

मुख्य अतिथि हिंदुस्तानी अकादमी के अध्यक्ष प्रोफेसर उदय प्रताप सिंह ने कहा कि माधव कृष्ण की कविताओं की छटपटाहट की प्रक्रिया शीर्षक में दिख रही है। बात मूर्तिपूजा की नहीं, मूर्तिभंजना की होनी चाहिए क्योंकि भारत की माटी पर भारत की संस्कृति और विचारधारा ही पनप सकती है। उन्होंने विघटनकारी शक्तियों को सामाजिक ढांचे में विद्वेष पैदा करने के स्थान पर सम्वाद करने का संदेश देते इस काव्य संग्रह की सराहना की, और भविष्य में एक बड़े साहित्यिक सम्भावना को रेखांकित किया। लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि नवगीतकार ओम धीरज जी ने कहा कि यह काव्य संग्रह बहुकोणीय दृष्टिबोध से सम्पन्न है। इसके बहुआयामी चरित्र को समझने के लिए इसे समग्रता के साथ पढ़ना चाहिए। यह आज का समय की दोहरी नागरिकता का दर्पण है। हृदय को परदुःखकातर बनाने वाले काव्य को ही साहित्य कहते हैं और ये विशेषताएं इस पुस्तक में सामने आती हैं। इनमें भाव संकुल हैं, आयताकार हैं और वृत्ताकार भी। माधव कृष्ण के भीतर की आग उम्मीद की आग है, और यह सबके भीतर जलती रहनी चाहिए।
ओम धीरज ने विशिष्ट साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए इस संग्रह की अनेक कविताओं को उद्धृत करते हुए रधवा नामक कविता को सामाजिक स्थिति की प्रतिनिधि कविता बताया।
गंभीर आधार वक्तव्य देते हुए डॉ शिखा तिवारी ने अनेक कविताओं के माध्यम से माधव कृष्ण के आक्रोश, सम्वेदना को रेखांकित किया। उन्होंने उनकी कविता पढ़ी, “सीखों पूर्वजों से, युद्ध बन्द, योद्धा मित्र, संबंधी भी, और नीतिगत युद्ध दिलों को विषाक्त नहीं करते, परिणाम पर रक्तपात नहीं करते।” इस प्रकार आजकल चुनावोपरान्त हिंसा को नकारते हुए वे परिणाम और प्रत्याशी को स्वीकार करने का आग्रह करते हैं। कवयित्री पूजा राय ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुए “जरूरी है बोलना” पढ़ी, सिंह ही क्यों सुने जाएं, मेमने सब कहां जाएं, मेमने मिमिया रहे हों बोलने दो, हृदय की हर सुप्त ग्रंथि खोलने दो, बोलना ही जरूरी है, सच नहीं एकाधिकृत है। उन्होंने कहा कि ऐसी कविताएं लिखी जानी चाहिए क्योंकि इन कविताओं से हम अपनी सामाजिक स्थिति व घटनाओं के प्रति संवेदनशील होते हैं।

महिला महाविद्यालय के डॉ निरंजन यादव ने कहा कि अपने जीवन के द्वंद को, संघर्ष को कविता में जीना उन्हीं कवियों के सामर्थ्य में होता है जो खुद के जीवन को कविता के समानांतर जीते हैं ।आप इस बात को माधव से बात- चीत करते हुए एवं उनकी कविताओं को पढ़ते हुए बराबर महसूस करेगें। उन्होंने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि लोगों की भून और हथियार की अंधी धार माधव कृष्ण की कविताओं के विषय हैं।

स्वामी सहजानन्द महाविद्यालय के डॉ प्रमोद कुमार श्रीवास्तव अनंग जी ने कहा कि मनुष्य जिस जटिल समाज में रहता है, वह तर्कशील ही नहीं भावप्रधान भी होता है, अतः कविता प्रस्फुटित होती ही रहेगी, लोग उससे सुकून, प्रेरणा लेते ही रहेंगे, माधव जैसे कवि कविता का सृजन करते ही रहेंगे और समाज भी संस्कारित होता ही रहेगा। ईश्वर की महती कृपा जिसपर होती है उसे कवित्व प्रतिभा दे देते हैं। कभी कवि, उदास या निराश या फिर अपने इर्द- गिर्द का परिवेश देख क्षोभ ग्रस्त होता है, या उसकी भावनाएं आहत होती हैं तो उसकी अभिव्यक्ति कर हल्का हो लेता है, दूसरा भी एक क्षण विशेष में रचित कविता को पढ़ खुद उससे जुड़ा महसूस करता है। समाज के बहुत से सवालों का उत्तर वैसे इतिहास तय करता है, मगर कवि या साहित्यकार उन समस्याओं को उद्घाटित करता है, सचेत और संवेदनशील बनाता है, यही नहीं रास्ता भी सुझाता है, अन्यों से वह ज्यादा संवेदनशील, सचेत और सजग प्रहरी होता है, उसी कड़ी में माधव जी भी आते है।डॉ संतोष तिवारी ने कहा कि जहां समाज में पूर्वाग्रह या दुराग्रह से ग्रसित लोग साहित्यकार होने का दम्भ भरते हुए गोलबन्दी में उलझे हुए हैं वहीं सम्वेदनाओं से भरे एक मुकम्मल इंसान और कवि का नाम है माधव कृष्ण जिनका प्रयास कबीर की दृष्टि से दुनियां को देखना और कृष्ण के कर्मयोग को आत्मसात कर जीवनपथ पर बढ़ने के लिए समाज को प्रेरित करना है।’पसीने और मेहनत के मोलभाव..’से उनको गुरेज है तथा कवि की दृष्टि में “धर्म पलायन नहीं, धर्म निष्काम कर्म और सुमिरन” है।वह निर्गुण और सगुण को प्रतिस्पर्धी या एक दूसरे का विरोधी नहीं बल्कि पूरक मानता है।कामरेडों को मूर्ति पूजा नहीं आती शीर्षक से प्रकाशित काव्य संग्रह कवि के बेबाक व्यक्तित्व ,अतीत के ज्ञान और भविष्य की अंतर्दृष्टि से परिचय कराने के साथ समकालीन गतिविधियों का लेखा जोखा प्रस्तुत करता है।

कवयित्री अनुश्री ने कहा कि, यह काव्य संग्रह प्रेम की कविता के कारण उत्कृष्ट हो चुका है, तुमने प्रेम भी नहीं मांगा क्योंकि मांगना तुम्हारा संस्कार नहीं।

अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ अजय राय ने किया और आभार ज्ञापन डॉ श्रीकांत पांडेय ने किया। संचालन डॉ गजाधर शर्मा गंगेश ने किया। समारोह में भूतपूर्व चेयरमैन विनोद अग्रवाल, डॉ सानन्द सिंह, डॉ सन्तन कुमार, मोती प्रधान, आर्य समाज के प्रधान आदित्य प्रकाश, श्री गंगा आश्रम के सदर प्रभारी रामअवध यादव के नेतृत्व के मानव धर्म के सदस्य, उद्यमी संजीव गुप्ता, अच्छे कुशवाहा, गायत्री परिवार के जिलाध्यक्ष बाबू सुरेंद्र सिंह, श्री चन्द्र प्रकाश, मनीष सिंह, अभिषेक अग्रवाल, बद्रीश श्रीवास्तव, पत्रकार सुजीत सिंह, आशुतोष त्रिपाठी, आशीष राय, शिवकुमार राय, अंशु गुप्ता, सत्य सिंह, रुचि सिंह, कुमुद सिंह, अंजलि सहाय, प्रियंका तिवारी, निमिषा, सोनाली, खुशबू पांडेय इत्यादि गणमान्य लोग उपस्थित थे।


     

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