घनाक्षरी छंद ! देश में व्याप्त वर्तमान माहौल पर

घनाक्षरी छंद

होती जब राजनीति, बेटियों के खून से तो,
सोच तुच्छ देख ऐसी,दिल टूट जाता है।

होने पर गुनाह भी, जाति धर्म भेद चले,
देख भेद भाव ऐसा, खून खौल जाता है।

देखते हैं लोग जब,घूर घूर बेटियों को,
सबक सिखाने हेतु, हाथ बढ़ जाता है।

आबरू को लूट के भी, बचे जो दरिंदा कोई, पोर पोर काटने का, मन बन जाता है।

कवि- अशोक राय वत्स.
रैनी मऊ उत्तरप्रदेश 8619668341

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