अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस- 1 मई

वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 01मई 2019। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस “1 मई” को विश्व के अनेक देशों में मनाया जाता है। कहा गया है कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण में वहां के किसानों, श्रमिकों, कर्मचारियों तथा कारीगरों का महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि इन्हीं के बलबूते समाज, उद्योग व व्यवसाय आरम्भ होता है।
उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस का आरम्भ 1 मई 1886 को माना जाता है।उस दिन अमेरिका के मजदूरों तथा उनके संगठनों ने काम का समय आठ घंटे रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। शिकागो की हेय मार्केट में शान्ति पूर्ण ढंग से चल रही उस हड़ताल के दौरान किसी अज्ञात ने बम धमाका कर दिया। बम ब्लास्ट के बाद पुलिस द्वारा मज़दूरों पर की गयी गोलीबारी में सात मज़दूरों की मौत हो गयी थी। आज वर्तमान समय में भारत सहित अनेकों देेेशों मेंं कारीगरों,श्रमिकों के कार्य करने हेतु 8 घंटे काम करने संबंधित नियम है।
1 मई को दुनिया के कई देश श्रमिक दिवस मनाते हैं। भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था। आज बढ़ती महंगाई और पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति हेतु मजदूरों को न चाहते हुए भी अतिरिक्त कार्य करने को विवश होना पड़ रहा है। आज की वास्तविकता है कि इस कम्प्यूटर युग में मजदूर को मजदूरी के लाले पड़ गये हैंं। आज मजदूर हर रोज सुबह शाम बढती महंगाई से परेशान है। महंगाई से आज हर मध्यम तबका परेशान है। अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को आज भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। संगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए केन्द्र और राज्य सरकारोंं द्वारा मजदूरो के कल्याणार्थ अनेक योजनाये शुरू की गयी हैं ।गरीब मजदूरों के लिए मनरेगा योजना शुरू की गयी और उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये परन्तु रोजाना काम न मिलने से आज भी वे बेहाली में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। आज के मशीनी समय ने मशीनों की रफ्तार तो तेज कर दी परन्तु कल कारखानोंं और औद्योगिक इकाईयो की रौनक छीन ली। कभी मजदूरोंं से भरी रहने वाली ये मिलेंं, कल कारखानें कम्प्यूटरीकृत हो चुकी हैं। इनमें पहले के कार्यरत मजदूर अब बेरोजगार हो रहे हैं। श्रमिकों के अनेकों काम अब मशीनों से लिया जाता है और वे कम समय में अधिक कार्य पूर्ण कर लेती हैं। आज भी मजदूरों से फैक्टरियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर कम मजदूरी दी जाती है जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में वे परिवार अपने बच्चों को भी मजदूरी कराने पर विवश हो जाते हैं।भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा।फैक्टरी कानून 1948 के तहद 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन 4.30 घंटे की कार्यावधि तय की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी इतने कड़े कानून होने के बाद भी मजबूरन बच्चों से होटलों, कारखानों, दुकानों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जाता है। देश के विकास और निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाने वाले श्रमिकों के लगन, कठिन परिश्रम को देखते हुए उनके जीवन स्तर को उठा उनके चेहरों पर मुस्कान लाकर उन्हें विकास की मुख्य धारा में जोड़ने से ही श्रमिक दिवस सार्थक होगा।

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