भारत बंद ! एससी एसटी एक्ट में हुए संसोधन के विरुद्ध दाखिल हो पुनर्विचार याचिका

लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ,2 अप्रैल 2018। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एससी एसटी एक्ट मे किये गए संशोधन को लेकर प्रदेश में दलित संगठनों ने तीव्र आक्रोश व्यक्त किया है। इस संशोधन के विरोध में दलित संगठनों ने आज भारत बंद के समर्थन में अनेकों जिलों में प्रदर्शन कर विरोध दर्ज कराया।एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को लेकर भारत बंद के दौरान यूपी के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन और आगजनी की घटना पर प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने कहा कि रविवार रात ही को जिलों के डीएम और एसएसपी को अलर्ट किया गया था। उन्होंने कहा कि मेरठ, हापुड़, आगरा और गाजियाबाद में हुई हिंसा प्री-प्लानिंग का हिस्सा प्रतीत हो रही है। गाजीपुर में एसडीएम विनय कुमार गुप्ता के माध्यम से एक ज्ञापन महामहिम राष्ट्रपति को प्रेषित करते हुए कहा गया कि संविधान की मूल भावना एवं लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए माननीय न्यायाधीशों के फैसले पर पुनर्विचार के लिए करोड़ों लोगों की भावनाओं का सम्मान किया जाए।

ज्ञातव्य है कि 2009 में महाराष्ट्र के सरकारी फार्मेसी कॉलेज में एक दलित कर्मचारी द्वारा प्रथम श्रेणी के दो अधिकारियों के विरुद्ध कानूनी धाराओं के तहत आवेदन दर्ज कराने का है। डीएसपी स्तर के पुलिस अधिकारी ने मामले की जांच की और चार्जशीट दायर करने के लिए अधिकारियों से लिखित निर्देश मांगा। संस्थान के प्रभारी डॉ सुभाष काशीनाथ महाजन ने लिखित निर्देश नहीं दिए तो दलित कर्मचारी ने सुभाष महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। इस पर सुभाष महाजन ने उच्च न्यायालय में उस एफआईआर को रद्द करने की अपील की , जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। महाजन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाजन के विरुद्ध एफआईआर हटाने के निर्देश के साथ ही साथ एससी एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। गत 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी (अपॉइंटिंग अथॉरिटी के स्तर) की इजाजत के बाद ही हो सकती है। जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी। हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया गया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा।
प्रदर्शनकारी दलित संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ जाएगा। 1989 के अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि अग्रिम जमानत मिलने से अपराधियों के बचने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। दलित वर्ग के जनप्रतिनिधियों समेत विपक्षी दलों ने सरकार ने पुर्नविचार याचिका दाखिल करने की मांग की है।प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। लोग धैर्य बनाए रखें।

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