पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हुआ चातुर्मास महानुष्ठान 

गाजीपुर। प्रसिद्ध सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधिपति एवं जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति महाराज के चातुर्मास महाव्रत का समापन रविवार को वैदिक परम्परागत रूप से हुआ।


     श्रावण प्रतिपदा से आरम्भ हुए अनुष्ठान का समापन भाद्रपद पूर्णिमा के अवसर पर पूर्णाहुति, हवन-पूजन, प्रवचन के उपरांत विशाल भंडारे के साथ हुआ।

    पूर्णाहुति कार्यक्रम का शुभारम्भ महामंडलेश्वर स्वामी ने अपने ब्रह्मलीन गुरु महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति महाराज के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलित कर किया। वक्ताओं ने 

कहा कि यह शक्तिपीठ अध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। इस पवित्र स्थल पर आने से व्यक्ति का महत्व बढ़ जाता है। यहां से जो जितना जुड़ता है, वह उतना ही जुड़ता चला जाता है। 

     महामंडलेश्वर भवानीनन्दन यति महाराज ने चातुर्मास की व्याख्या करते हुए बताया कि चातुर्मास, सनातन वैदिक धर्म में आहार, विहार और विचार के परिष्करण का समय है। चातुर्मास संयम और सहिष्णुता की साधना करने के लिए प्रेरित करने वाला समय है। इसका सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है। इस दौरान तप, शास्त्राध्ययन एवं सत्संग आदि करने का तो विशेष महत्व है,वहीं, सभी नियम सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक दृष्टि से भी बड़े उपयोगी हैं। चातुर्मास धर्म, परम्परा, संस्कृति और स्वास्थ्य को एक सूत्र में पिरोने वाला समय माना जाता है। चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है। बढ़ती असंवेदनशीलता के समय में संयम की यह साधना और भी आवश्यक हो जाती है। संयमित आचरण से हम न केवल मन को वश में करना सीखते हैं, बल्कि हमें धैर्य और समझ भरा व्यवहार करना भी आता है। चातुर्मास हमें मन के वेग को संयम की रस्सी से बांधने की प्रेरणा देता है। कहा कि चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आरोग्य विज्ञान व सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने चन्द्र ग्रहण पर विस्तार से प्रकाश डाला।

       इस मौके पर कथा वाचिका आराधना सिंह, मौनी बाबा मठ कनुआन के महंत सत्यानंद महाराज, संत देवरहा बाबा, डॉ रत्नाकर त्रिपाठी, चोब सिंह, सर्वानंद सिंह, डा. इंद्रजीत सिंह, भुड़कुड़ा के प्रभारी निरीक्षक योगेन्द्र सिंह, तारावती, अखंड प्रताप सिंह, आचार्य शंभू पाठक, आचार्य अवनीश पाण्डेय, डी एन सिंह, महावीर प्रसाद, मनीष पाण्डेय, डॉ. अमिता दूबे, राधेश्याम जायसवाल, सतीश जायसवाल, लौटू प्रजापति आदि रहे। संचालन डा संतोष यादव ने किया। 

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