अर्पण, तर्पण और समर्पण में ही समाहित है त्याग की भावना – महाराज श्री

चातुर्मास महानुष्ठान की पूर्णाहुति 29 सितंबर को


गाजीपुर। सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधीश्वर एवं जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी श्री भवानीनंदन यति जी महाराज द्वारा अपने चातुर्मास महानुष्ठान की पूर्णाहुति शुक्रवार 29 सितंबर को सम्पन्न होगी। 

आषाढ़ पूर्णिमा (गुरुपूर्णिमा) तिथि पर गुरुपूजा के साथ शुरू हुए इस अनुष्ठान की पूर्णाहुति भादों पूर्णिमा के अवसर पर 29 सितंबर को सिद्धपीठ पर क्काशी के प्रकांड वैदिक विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूर्णाहुति महायज्ञ सम्पादित होगा। 

         समापन कार्यक्रम में जूना अखाड़ा के कई महामंडलेश्वर संत, वैदिक विद्वान व राजनीतिक तथा सामाजिक हस्तियों सहित सिद्धपीठ से जुड़े देश के कोने-कोने से शिष्य श्रद्धालु व गणमान्यजन की गरिमामय उपस्थिति रहेगी। मठ की परंपरानुसार यज्ञ की पूर्णाहुति पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा, जिसमें पुण्य लाभ की कामना संग श्रद्धालु भक्तजन महाप्रसाद ग्रहण करेंगे।

       उल्लेखनीय है कि अध्यात्म जगत में एक तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधीश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति जी महाराज ने सिद्धपीठ की गद्दी पर आसीन होने के उपरांत अपने गुरुजनों की प्रेरणा से उनके ही मार्ग का अनुसरण करते हुए चातुर्मास अनुष्ठान का संकल्प लिया। इस कड़ी में वह सोमनाथ, नागेश्वर महादेव, त्रयम्बकेश्वर महादेव, घृष्णेश्वर महादेव, भीमाशंकर महादेव, ओम्कारेश्वर, महाकालेश्वर, बाबा विश्वनाथ, रामेश्वरम, मल्लिकार्जुन महादेव, केदारनाथ महादेव, बाबा वैद्यनाथ देवधर, परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग तथा नेपाल स्थित पशुपतिनाथ महादेव मंदिर पर लगातार प्रवास कर चातुर्मास महायज्ञ संपादित कर चुके हैं। विगत कुछ वर्षों से वह सिद्धपीठ हथियाराम मठ में ही अपना चातुर्मास अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं। 

          चातुर्मास की व्याख्या करते हुए महामंडलेश्वर भवानीनन्दन यति महाराज ने बताया कि चातुर्मास, सनातन वैदिक धर्म में आहार, विहार और विचार के परिष्करण का समय है। यह संयम और सहिष्णुता की साधना करने के लिए प्रेरित करने वाला समय है। इस दौरान तप, शास्त्राध्ययन एवं सत्संग आदि करने का तो विशेष महत्व है ही, सभी नियम सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक दृष्टि से भी बड़ा उपयोगी है। चातुर्मास धर्म, परम्परा, संस्कृति और स्वास्थ्य को एक सूत्र में पिरोने वाला समय माना जाता है। चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है। बढ़ती असंवेदनशीलता के समय में संयम की यह साधना और भी आवश्यक हो जाती है। संयमित आचरण से हम न केवल मन को वश में करना सीखते हैं, बल्कि हमें धैर्य और समझ भरा व्यवहार करना भी आता है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास ऐसा अवसर है, जिसमें हम खुद अपने ही नहीं औरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर उसे सम्मान देने के भाव को जीते हैं। चातुर्मास हमें मन के वेग को संयम की रस्सी से बांधने की प्रेरणा देता है। कहा कि स्वास्थ्य की देखभाल और जागरूकता के लिए भी चातुर्मास का बड़ा महत्व है। चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आरोग्य विज्ञान व सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को यदि हम केवल तीन शब्दों में कहना या बताना चाहें तो इसका मतलब अर्पण, तर्पण और समर्पण है। इन तीनों में ही त्याग की भावना समाहित है। उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ हथियाराम मठ स्थित जगतजननी वृद्धम्बिका माता के पुण्य प्रताप से यहां की माटी चंदन से भी पवित्र है। इस पवित्र भूमि पर किए गए धार्मिक अनुष्ठान से मन को अपार शांति मिलती है। 

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