कविता ! “मत रोको आज लिखूंगा मैं”
“मत रोको आज लिखूंगा मैं”
जिनको विरोध है भारत से,वो देश में क्यों कर रहते हैं।
अपने नापाक इरादों से,हर पल वो देश को छलते हैं।।
मत रोको आज लिखूंगा मैं,उन जयचन्दों के बारे में।
जो देश का सौदा करते हैं,उन बेशर्मों के बारे में।।
नागरिकता एक बहाना है,उनको तो दंगा करना है।
जिन्हें अर्थ पता नहीं इसका, उनको अब नंगा करना है।।
यहाँ जाति धर्म की बात नहीं, सर्वोपरि शान देश की है।
जो भी दंगा भड़काते हैं, शामत बस उन पतितों की है।।
मत गद्दारों से बात करो,चाहे वो मौलाना ,पंडित ही हो।
बस हुक्का पानी बंद करो,चाहे कोई हिन्दू मुस्लिम हो।
इतने से न यदि बात बने, तो देश निकाला करो सभी।
उड़वा दो उनको तोपों से, जो भी गद्दारी करे कभी।।
कुछ माया नगरी के कीड़े, सड़कों पर रेंग रहे हैं अब।
जिनका है कोई वजूद नहीं, वही ज्ञान सिखा रहे हैं सब।।
जिनकी रोजी हमसे चलती, वही आंँख दिखा रहे हैं सब।
बेचा है जिसने गरिमा को, विधवा विलाप कर रहे अब।।
जिन सांपों को दूध पिलाया था, वो हिंसक बने हुए हैं सब।
जो पलते हैं हमारे टुकड़ों पर, अराजक बने हुए हैं अब।।
जागो जागो इनको रोको, यह देश बचा लो तुम इनसे।
बन जाओ वंशज राणा के, यदि आन बचानी है फिरसे।।
अब भी यदि नहीं रोका इनको, ये काफिर बढ़ते जाएंगे।
जो रेंग रहे हैं किड़ों से, वो पल -पल को तड़पाएंगे।।
मकसद जिनका बंटवारा है,क्यों बात कर रहे हो उनसे।
जो देश द्रोही हैं बन बैठे, क्यों दया कर रहे हो उनपे।।
कवि - अशोक राय वत्स
रैनी, मऊ ,उत्तरप्रदेश
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