बसंत पंचमी!  बसंतोत्सव 2020आरम्भ

गाजीपुर, 28 जनवरी 2020।हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्योहार धार्मिक परम्पराओं के साथ हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में मनाया जाता है। ऋग्वेद में माता सरस्वती को परम चेतन बताते हुए बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका कहा गया है। इसी दिन विद्या, ज्ञान एवं विवेक की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती देवी का पूजनोत्सव कर उनकी आराधना की जाती है।बसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन पूजन में पीले वस्त्रों का विशेष महत्व होता है।
  उल्लेखनीय है कि भारतीय परम्परा के अनुसार छः ऋतुओं में सबसे लोकप्रिय ऋतु बसंत ऋतु मानी जाती है| इस ऋतु में प्रकृति में मादकता का भान होने लगता है। आह्लादित प्रकृति का भरा सौंदर्य तन मन को मोहित करने लगता है। इस ऋतु का स्वागत माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के दिन श्रृष्टि पालक भगवान विष्णु और कामदेव के पूजन का भी विधान है। इसी से यह बसंत पंचमी का पर्व कहलाता है| शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है| बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है|
     कहा गया है कि सृष्टि रचना के दौरान ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि तब चारों ओर मौन छाया हुआ था।विष्णुजी से अनुमति लेकर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जब जल का छिड़का तो पृथ्वी पर जलकण पड़ते ही कंपन होने लगा और वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई जो एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थीं। उनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। शेष दो हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्माजी के देवी से वीणा बजाने के आग्रह पर जब देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त होने लगा। पवन चलने से सरसराहट होने लगी जिससे ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी “सरस्वती” नाम दिया। माता सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी अआदि नामों से जाना जाता है।
       मान्यता है कि पंचमी बसंत का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है। बसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी शबरी की कुटिया में पहुंचे थे। जब सीता जी को रावण छल से हरण कर लंका ले गया तो उन्हें खोजते हुए राम और लक्ष्मण वन में जिन स्थानों पर गए थे उनमें दंडकारण्य भी था। जहां शबरी नामक भीलनी रहती थी। कहते हैं कि गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है जहां शबरी मां का आश्रम था। वहाँ शबरी माता का मंदिर भी है। आज भी उस क्षेत्र के वनवासी एक शिला को पूजते हैं, कहा जाता है कि भगवान श्रीराम आकर यहीं बैठे थे।
   इतिहास,कारों के अनुसार,बसंत पंचमी हमें महाराज पृथ्वीराज चौहान की याद दिलाता है। जिन्होंने विदेशी आक्रांता मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार महाराज पृथ्वीराज चौहान पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें बंदी बनाकर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया। असीम यातनाएं देते हुए मुहम्मद गोरी ने उनकी आंखें फोड़ दी थी। महाराज पृथ्वीराज चौहान के कवि चंदबरदाई उनकी मृत्यु से पूर्व उनसे मिलने पहुंचे थे । उसी दरम्यान मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व चौहान के शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा,इस पर वहां मौजूद  कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को अपनी कविता के माध्यम से संदेश दिया कि “चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥
   पृथ्वीराज चौहान ने अपने कवि चंदबरदाई के संकेत को समझकर से जो बाण चलाया वह सीधे  मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा घुसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक दूसरे के पेट में छुरा भोंककर आत्मबलिदान दे दिया। 1192 ई. की यह घटना बसंत पंचमी के दिन ही घटित हुई थी।
       इस वर्ष बसंत पंचमी 29 जनवरी 2020 को कल मनायी जायेगी। पंचमी तिथि का आरंभ – 29 जनवरी 2020 को 10:45 बजे से तथा पंचमी तिथि का समापन- 30 जनवरी 2020 को 13:18 बजे होगा।
  पूजा का शुभ मुहूर्त – 10:45 से 12:35 बजे तक रहेगा।

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