ज्वलन्त रचना ! “कोई दरिंदा नहीं बचेगा”
“कोई दरिंदा नहीं बचेगा”
कहीं देर न हो जाए, फांसी पर इन्हें झुलाने में।
आग लगादो बहसी को, कहीं देर न हो जाए जगने में।।
नारे बाजी कैंडल मार्च , अब बहुत हुई नेतागीरी।
चुन चुन के मारेंगे हम तो, बहुत हुई चमचागीरी।।
कहीं दामिनी कहीं प्रियंका, कब तक सहते जाएंगे।
यदि इनको अब भी नहीं रोका, तो घर से बेघर हो जाएंगे।।
आग लगाओ तन को इनके, जैसे कचरे की ढेरी को।
कुचलो इनके फन को ऐसे, जैसे कोल्हू में गन्ने को।।
पहले अंग कटें इनके सब,फिर लटकाओ सूली पर।
बहसी पन को साफ करो,फिर बात करेंगे टीवी पर।।
पहले अंग कटे उसका, जिससे उसने यह कृत्य किया।
इसके बाद गला रेतो,जिसने भी ऐसा कृत्य किया।।
कभी मंदसौर कभी अलीगढ़, कभी कलंकित दिल्ली है।
नहीं सुरक्षित दिखता कोई, चाहे गली कचहरी है।।
लुटी थी ट्विंकल लुटी निर्भया ,आज प्रियंका लुटती है।
अरे देखो तो संसद वालों, एक चिकित्सक की अर्थी उठती है।।
जब उठी प्रियंका की अर्थी ,संसद में खेल चल रहा था।
कौन बड़ा है देश भक्त, इस पर संवाद चल रहा था।।
अब और नहीं हिम्मत मेरी, अब और नहीं सह पाऊंगा।
अब भी यदि संसद नहीं जागी, तो बागी मैं बन जाऊंगा।।
मोदी जी कानून बनादो ,इस संसद के गलियारे में।
कोई दरिंदा नहीं बचेगा ,न्याय के गलियारे में।।
कवि – अशोक राय वत्स
रैनी (मऊ) उत्तरप्रदेश
मो. 8619668341
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