कविता ! कवि हौशिला अन्वेषी की रचना

* सत्य यहाँ बीमार हो गया*

सत्य यहाँ बीमार हो गया
दुखिया सब संसार हो गया ।
नैतिकता तो नजरबंद है,
झूठ हमें स्वीकार हो गया ।।
हवा बही दुख देने वाली ,
मौसम ही बेकार हो गया ।
अच्छे दिन का सपना देखा,
जीवन ही भंगार हो गया ।।
न्योता पाकर लूट पाट का,
नाटक सब तैयार हो गया ।
आज विदेशी निर्भरता का,
अपना सब आधार हो गया ।।
जगद्गुरू कहलाने वाला,
भारत अब बाजार हो गया ।
सत्य अहिंसा विफल हो गया,
झूठों का भरमार हो गया ।।
आदर्शों का हुआ सफाया ,
दुख सीमा के पार हो गया ।
अर्थहीन सब अर्थ पा गए ,
करतब भी साकार हो गया ।।

*******************†*****

      <strong>  *2. सब बैठे हैं*</strong>

सब बैठे हैं
हम भी,
हवा में
आसन लगाकर ।
जहाँ
न जमीन है,
न जमीनी हकीकत ।
मगर हम हैं
और हमारा हम भी,
हमारे साथ ।
जो
पूरी नासमझी से
लड़ रहा है
अपनी लड़ाई
हवा में ,
विकसित नासमझी के साथ ।।


3. दिनचर्या से बाहर आओ

दिनचर्या से बाहर आओ,
आकर अपना देश बचाओ।
देखो कौन प्रदूषण लाया,
सोचो समझो हमें बताओ ।।
गिरि कानन जंगल रोते हैं ,
इनके ऊपर प्रेम लुटाओ ।
मानवता के भक्षक को तुम,
सात समुंदर पार भगाओ ।।
हर गरीब के घर में जाकर,
सच्ची सच्ची बात बताओ ।
जितने अँखुए फूट रहे हैं ,
उनको बढिया वृक्ष बनाओ ।।
अपने वैचारिक दर्शन से,
जनता में विश्वास जगाओ।
और संगठन के बलबूते ,
दुश्मन को तुम मार भगाओ । ।
अमन चैन भाईचारे पर,
अपना पूरा प्यार लुटाओ।
इसी तरह तुम आगे बढ़कर,
इस धरती को स्वर्ग बनाओ ।।
तरह तरह के फूल खेलेंगे,
खुशबू लेकर नाचो गाओ ।
इन्कलाब इसको कहते हैं,
यही बात सबको समझाओ ।।

रचनाकार – हौशिला अन्वेषी
मोबाइल नं. 8657834348

Visits: 111

Leave a Reply