अजा-अजजा कानून ! शीर्ष अदालत ने किया परिवर्तन

नयी दिल्ली, 01 अक्टूबर 2019। शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति और जनजाति उत्पीड़न संरक्षण कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों को हल्का करने संबंधी गत 20 मार्च, 2018 के फैसले में दिये गये निर्देश आज वापस ले लिये।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ ने केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि समाज में समानता के लिये अनुसूचित जाति और जनजातियों का संघर्ष देश में अभी खत्म नहीं हुआ है। इन वर्गो के लोग आज भी अस्पृश्यता का सामना कर रहे हैं और वे बहिष्कृत जीवन गुजारते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत अजा- अजजा वर्ग के लोगों को संरक्षण प्राप्त है, पर अब भी उनके साथ भेदभाव हो रहा है। इस कानून के प्रावधानों के दुरूपयोग और झूठे मामले दायर करने के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि यह जाति व्यवस्था की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय विफलता का नतीजा है।
पीठ ने इस कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधान और कोई भी मामला दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने के निर्देशों को अनावश्यक करार दिया।
पीठ ने कानून के प्रावधानों के अनुरूप ‘समानता लाने’ के लिये कुछ निर्देश देने का संकेत देते हुये कहा था कि आजादी के 70 साल बाद भी देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के साथ ‘भेदभाव’ और ‘अस्पृश्यता’ बरती जा रही है।

Visits: 98

Leave a Reply