कवि की नजर में बनारस
“सुबह बनारस शाम बनारस”
बनारस धाम निराला है,
इसका शिक्षा से नाता है।
जो भी खाए एक बीड़ा पान
कहे कबीरा दीवाना है।
अस्सी घाट की रौनक प्यारी,
गोदौलिया की शान निराली।
गूंज रही घंटों की धुन या फिर हो शहनाई।
घर घर से भाईचारे का देता है शोर सुनाई ।
जन जन में बाबा विश्वनाथ हैं,
भैरो बाबा इसके कोतवाल हैं।
गंगा मैया इसके चरण पखारें,
कहते ऐसा तो तुलसीदास हैं।
माँ गंगा का श्रृंगार बनारस,
बाबा विश्वनाथ का धाम बनारस।
बात करें हम साड़ी की या करें आरती गंगा की,
बिस्मिला खाँ की बात करें तो उनका तो है प्यार बनारस।
सुबह बनारस शाम बनारस,
सांढ बनारस भांड़ बनारस।
नगरों की यदि बात करें तों
भारत की तो है शान बनारस।
कवि - अशोक राय वत्स
रैनी ,मऊ उत्तरप्रदेश
मो.8619668341
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