विश्वकर्मा जयन्ती ! 17 सितम्बर 2019

विश्वकर्मा जयन्ती पर विशेष

गाजीपुर,17 सितम्बर 2019। श्रम, शिल्प व रचना के आदिदेव एवं वास्तु सृजक देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा जयन्ती को श्रमशील समाज में महान आदर प्राप्त है। विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर सभी यांत्रिक संस्थानों, कल कारखानों सहित छोटे बड़े सभी कार्यशालाओं में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित कर या फिर चित्र रखकर पूजन अर्चन किया जाता है।
शास्त्रों में देवशिल्पी विश्वकर्मा के सम्बन्ध में वर्णित है। उनके बारे में स्कंद पुराण में श्लोक लिखा गया है कि “बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी। प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च। विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति” अर्थात महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या की ज्ञाता थीं। उनका विवाह आठवें वसु महर्षि प्रभास के साथ संपन्न हुआ था। विश्वकर्मा इन्हीं की संतान थे।
विश्वकर्मा भगवान को सभी शिल्पकारों और रचनाकारों का भी इष्टदेव माना जाता है। उन्हें ब्रह्मांड का रचयिता भी माना जाता है तो वहीं जंवऋग्वेद के अंतर्गत इन्हें सर्वश्रेष्ठ सत्य के तौर पर भी उल्लिखित किया गया है। आज के समय में उन्हें सर्वश्रेष्ठ इंजीनियर माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी वुद्धि, विवेक तथा कल्पना शक्ति के बल पर अनेकों अविस्मरणीय भवनों का निर्माण कर अपनी मेधा का परिचय दिया था। उन्होंने ही देवताओं के अस्त्र-शस्त्र, महल आदि का निर्माण किया था। मान्यता है कि सतयुग में स्वर्ग लोक, त्रेता युग में सोने की लंका, द्वापर में द्वारिका और कलयुग में भगवान जगन्नाथबलभद्र और सुभद्रा की विशाल मूर्तियां के साथ ही सात यमपुरी, वरुण पुरी, पांडव पूरी, शिव मंडल पूरी, सुदामापुरी आदि का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। ऋग्वेद में इनके इनके संबंध में की 11 ऋचाएं लिखी गई हैं।

    विश्वकर्मा जयन्ती के दिन सभी यांत्रिक संस्थानों में काम रोक कर सभी औजारों व मशीनों की साफ- सफाई कर उनकी पूजा की जाती है। सर्वप्रथम पूजनस्थल पर साफसफाई कर सभी मौजूद औजारों को साफ कर पूजन स्थल पर रखते हैं। पूजन से पूर्व भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र, अक्षत-चावल, फूल,फल, रोली, सुपारी, धूप, दीप, रक्षा सूत्र,दुध दही और मिष्ठान एकत्र कर विधिविधान से पूजन अर्चन किया जाता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ कलश स्थापित कर रोली अक्षत लगायें। इसके उपरांत दोनों हाथों में फूल व अक्षत लेकर हाथ जोड़कर "ओम पृथिव्यै नमः, ओम अनंतम नमः, ओम कूमयि नमः, ओम श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः।" का मंत्र पढ़कर सभी मशीनों, विश्वकर्मा पर और कलश पर चारों तरफ छिड़क कर फल, फूल व मिष्ठान अर्पित कर दीप जलाकर पूजन किया जाता है। पूजन पूर्ण होने के उपरांत हवनादि पूर्ण कर अंत में प्रसाद वितरण कर समारोह का समापन किया जाता है।

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