कृष्ण जयंती की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

वाराणसी, 23 अगस्त 2019। कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व आज देश में धुमधाम से मनाया जा रहा है।जन्माष्टमी की पूजा विधि, मंत्र, भोग वस्तु और महत्व पर बताया गया है कि कृष्‍ण की पूजा नीशीथ काल यानी कि आधी रात में किये जाने की परंपरा है…
इस वर्ष निशिथ पूजा आज की रात 00:01 से 00:45 तक की जायेगी। व्रत की
पारणा कल प्रातः 05:59, 24 अगस्त को सूर्योदय के बाद होगी।
रोहिणी समाप्त- सूर्योदय से पहले
अष्टमी तिथि प्रारंभ– 08:08, 23 अगस्त
अष्टमी तिथि समाप्त – 08:31, 24 अगस्त

–पूजन-

त्व देवां वस्तु गोविंद तुभ्यमेव समर्पयेति !! इस मंत्रोच्चारण के साथ भगवान कृष्ण को माखन मिश्री के अलावा दूध, घी, दही और मेवा आदि का भोग लगाएं। इसके अलावा भगवान को पांच फलों का भी भोग लगाना चाहिए।
14 वर्षों के बाद इस जन्माष्टमी पर तीन संयोग एक साथ बन रहा है। जन्माष्टमी के दिन सूर्य देव अपनी सिंह राशि में रहेंगे। इस तारीख को छत्र योग, सौभाग्य सुंदरी योग और श्रीवत्स योग एक साथ बन रहा है।
ज्योतिष की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण की प्राण प्रतिष्ठा रात्रि 12.10 बजे के बाद ही करना सर्वश्रेष्ठ होगा। अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों का अपूर्व संयोग से मध्य रात्रि में जन्मोत्सव मनेगा।
व्रती व्यक्ति रात्रि में भगवान के प्रकाट्य पर चन्द्रदेव को अर्घ्य देकर इस व्रत को खोलता है।इसके लिए बाल कृष्ण लड्डू गोपाल की मूर्ति मंदिर में रखें या उनके चित्र को स्थापित करें। और रात्रि 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के समय का इंतजार करें। इस दिन भगवान के भजन गाएं और सुनें। रात 12 बजे भगवान का जन्म होने के बाद पूजा कर प्रसाद का वितरण करें।भगवान कृष्ण की पूजा सामग्री में इन चीजों का करें इस्तेमाल – एक खीरा, एक चौकी, पीला साफ कपड़ा, बाल कृष्ण की मूर्ति, एक सिंहासन, पंचामृत, गंगाजल, दही, शहद, दूध, दीपक, घी, बाती, धूपबत्ती, गोकुलाष्ट चंदन, अक्षत, तुलसी का पत्ता, माखन, मिश्री, भोग सामग्री। अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं।

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