कविता ! “फिर से केसर महकेगी”

फिर से केसर महकेगी

ताज हमारा लौटाया है, स्वाभिमान भी लौटाया है।
देखो भारत के वीर पुत्र ने, गौरव फिर से लौटाया है।।

जो अब तक नासूर बना था,उसने उसको है सुलझाया।
बन कर मिसाल खोए वैभव को,उसने फिर से लौटाया है।

एक प्रधान है एक विधान है, एक देश में एक निशान है।
मान मिला है वर्षों बाद, कहता ऐसा अब स्वाभिमान है।।
मुकुट हमारा लौटा करके, तुमने हम पर उपकार किया।
सत्तर वर्षों की पीड़ा हर, हमको नव जीवन दान दिया।।

अब घाटी के हर कोने में, फिर से केसर महकेगी
भारत के हर घर घर में, आज दिवाली दमकेगी।
दिल यह आज पुकार रहा है, खुल कर जश्न मनाओ सब।
जिस गली भी अफजल दिख जाए,उसकी गर्दन नप जायेगी।।

हर घर में संदेश भेज दो, आज तिरंगा फहराएंगे।
भारत के चारों कोने में, विजय दिवस आज मनाएंगे।
कह दो जाकर गद्दारों से, अब है उनकी खैर नहीं।
घाटी में यदि कोई अफजल आया, तो हम उसकी गरदन उतराएंगे।।

कवि – अशोक राय वत्स
रैनी (मऊ), उत्तरप्रदेश
मो.8619668341

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