कविता ! “वर्षा मन को लुभा रही”

“वर्षा मन को लुभा रही”

वर्षा की बूंदों को देखो,मानव मन को लुभा रही।
आसमान में उमड़ घुमड़ कर, बदरी देखो छा रही।।

बदरा को छाते देख, पोर पोर हर्षित हुआ।
पानी की बूंदें आने से, रोम रोम है भीग गया।।

ठंडी ठंडी हवा के झोंके, मन को आज लुभाते हैं।
बागों में छाई हरियाली, सबके मन को भाती है।।

मदमस्त होकर पशु पक्षी, अपनी राग सुनाते हैं।
बाज सरीखे पक्षी देखो, बादल की सवारी करते हैं।।

कल कल करके नदी और नाले, इठलाते से बहते हैं।
उन्हें देख कर ऐसा लगता , मानों नया गीत सुनाते हैं।।

वर्षा की पहली फुहार नें , फूलों में सुगन्ध भर दी है।
देखो देखो इन बूंदों ने, मन में खुशियां भर दी हैं।।

कवि – अशोक राय वत्स
रैनी (मऊ), उत्तरप्रदेश

मोबाइल नं. 8619668341

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